नज़रें
नज़रें
थक कर, हार कर, रोती हुई नजरों ने दिल से सवाल किया,
ऐ दिल तूने इश्क क्यों किया
ऐसी क्या खता थी मेरी जो तूने मुझे इतना दर्द दिया।
क्यों तूने खुद को उससे लगाया,
जिसको कभी तेरा ख्याल तक ना आया।
तू हर दफा उसके बारे में सोचता है,
सच जानता है, फिर भी क्यों नहीं खुद को रोकता है।
राहों पर भी तू बस एक दफा उसको देखना चाहता है,
हर तरफ बस उसकी तलाश में रहता है,
अगर वो दिख जाए तो धड़क उठता है
और अगले पल मुझे झुका लेता है।
तू हर दफा उसके लिए मुरादें मांगता है,
तू खोना नहीं चाहता उसे,
पर तू पा भी नहीं सकता ये जानता है।
अपनी लाली अब मुझसे छुपाई नहीं जाती,
तेरी ये मोहब्बत मुझे समझ नहीं आती।
बस कर रहम बख़्श मुझे पर, मैं थक गई हूं,
तेरे उससे वफ़ा करने की सजा मैं भुगत रही हूं।
या तो मोहब्बत का इज़हार कर उससे,
या उसे याद करना छोड़ दें,
या तो सीख ले उसके बिना हंसना,
या किस्मत की लकीरें मोड़ दे।