कम्पैरिजन
कम्पैरिजन
मैं मैं हूं, वो वो हैं
तो आखिर हमारी तुलना क्यों है
अगर मैं वो नहीं, तो वो भी तो मैं नहीं
अगर मुझमें खामियां हैं
तो कुछ खामियां उनमें भी तो होगी
अगर वो खुुबियों का खजाना हैं
तो कुछ खुुबियाां मुझमें भी तो होगी
क्यों हमें एक ही तराजू में तोला जाता है
क्यों मुझे उनकी तरह बनने को बोला जाता है
मैं काबिल हूँ,
मैं काबिल हूँ अपनी दुनिया में
और वो अपनी दुनिया में कामयाब हैं
तो क्यों उनकी कामयाबी को
मेरी काबिलियत से जोड़ कर
मुझ पर सवाल उठाए जाते हैं
ख्वाब तो बड़े या छोटे नहीं होते ना
तो क्यों मेरे ख्वाब उनसे मिलाए जाते हैं।
वो खूबसूरत है, और मैं नहीं तो क्या
वो लंबे हैं, और मैं नाटी तो क्या
वो फिट हैं, और मैं मोटी तो क्या
मेरा रंग रूप मेरी पहचान नहीं
उनसे पूरी तरह अलग होने पर भी
मुझ पर उन जैसे बनने का भार क्यों है
मैं मैं हूं, वो वो हैं
तो आखिर हमारी तुलना क्यों है।