तुम दोस्त हो, प्यार हो.....
तुम दोस्त हो, प्यार हो.....
रोज खामोश रात में,
चांद के आगोश में।
जब हम मिलते हैं,
तो यादों के ढेरों पिटारे खुलते है।
मैं सोचती जाती हूं और तुम,
तुम उस सोच को अल्फाज बनाती हो।
मेरे इधर उधर बिखरे जज़्बातों को समेट,
एक कागज के टुकड़े पर कविता बना सजाती हो।
तुम वो हो जो रोज,
मेरी रूह से दिल तक का मुआयना लेकर आती हो।
तुम दोस्त हो, प्यार हो,
तुम कलम हो मेरी
कभी आंखों के अश्क, तो कभी मुस्कुराहट बन जाती हो,
तुम SM में लिखने वाली मेरी साथी हो।