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Manoj Kumar Meena

Inspirational

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Manoj Kumar Meena

Inspirational

निर्मल स्वभाव माता का

निर्मल स्वभाव माता का

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स्वभाव है निर्मल माता तेरा और स्वरूप तेरा है विशाल,

दुखो की बेड़ी पड़ी पाव में कैसे चले अब ये मानव संसार,

मेरे अंदर बैठी रोई आत्मा क्यों बदल गये हम सबके विचार,

पूजा तेरी करते है पर ना करते स्त्री का सम्मान, 

आँखों से अश्रु बेहते है और चीख चीख कर कहते हैं,

पतित पावनी माता मेरी फिर भी पापी धरती पे रहते हैं 

स्त्री को दुर्गा रेहने दो ना करना तुम उसका अपमान

जो काली रूप में आजाए तो करदेगी वो सबका विनाश,

आँखो से अश्रु बेहते है और चीख चीख कर केहते हैं,

पर्वत जैसी दृड्ता जिसमे और लिए कमल पुष्प हाथो में संभल,

अश्रु भरी माँ इन आँखो से करता हूं मैं तुमको याद

मन करे संताप मेरा और लबो पे रहती है मुस्कान, 

कदम कदम पर पड़े है कांटे उची नीची खाई है,

पाव में मेरे पड़ी है बेड़ी ये कैसी दुविधा छाई है, 

सुख और दुख के इस भवर में चल रही है मेरी नैया,

कभी संभलती कभी डूबती ना मिल पाया इसको खेवैया, 

पाप पुण्य के इन फेरो में मेरी फंसी आत्मा कहती है,

आँखे मेरी माँ तेरे दर्शन पाने को फूट फूट कर रोती है, 

जो छूट जाए पतवार हाथ से, मैं फिर भी तेरे दर पे आऊंगा, 

स्वभाव है निर्मल माता तेरा मैं तेरे दर्शन पाऊंगा,

नौ रुपो की महिमा तेरी माँ लिखा के मैं बतलाऊँगा!


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