अकेली
अकेली
गलियारों में मेरे ना गूंजते अब ठहाके हैं,
ना आँगन में ही कोई शोर है।
रंगीली सी पतंग जो आई थी कट के कल छत पे,
बदरंग सी पड़ी है वहीं कहीं अटक के।
रुखसत तो तुझे कर दिया
पर इन सान्नाटों को कहां
करूं दफा
दीवारों पर मढीं ये तेरी यादें
कभी आंखों को मेरी हंसी दें
कभी रुला दें।
तेरे बिना नुकीली लगे यह तनहाइयाँ
तेरे बिना कंटिली लगें सन्नाटो की ये सिसकियाँ
तू जो पास था हर दिन खास था
लड़ते झगड़ते थे हम दोनों
धोनी के छक्कों पे उछलते थे हम दोनों
तू कितना मुझे डराया करता था
जब अपनी बाइक पर घुमाया करता था।
मैं चीख़ती थी और तू हंसता था।
नाराज तुझे करती थी
जब तेरा फोन चैक करती थी,
ऐसा नहीं था कि शक करती थी,
तू भटके ना बस यह दुआ करती थी।
जाना तेरा जरूरी था,
तुझे खुद पर यकीन आए ये जरूरी था।
टोकती कैसे तुझे आगे बढ़ने से,
रोकती कैसे मैं तुझे उड़ने से
तेरी कामयाबी के लिए ये
अकेलापन गवारा है मुझे,
क्योंकि मैं तेरी माँ हूँ, आखिर
मैंने ही तो संवारा है तुझे।