ज़हर का कतरा
ज़हर का कतरा
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दिल और ज़बान दोनों को जबसे आदत इसकी हो गई,
मदिरा के हर कतरे को मधु मान के पी गए।
जब किसी ने उंगली उठाई तो उसे ये कहकर टाल दिया
"थोड़ी सी तो पी है , डाका तो नहीं डाल दिया"
फिर अपनी ज़बान को तर किया
और अपनी रूह को पाकीज़गी से महरूम किया।
ज्यों ज्यों एक एक कतरा हलक से गुज़रा
मेरी सीरत को कहीं दफन कर गया।