उम्र की सीढ़ियाँ
उम्र की सीढ़ियाँ
उम्र की सीढ़ियाँ ये सिखातीं हमें
रास्ते ज़िंदगी के बतातीं हमें।
बचपना फिर लड़कपन जवानी मिली,
अब बुढ़ापे में छड़ियाँ टिकातीं हमें।
ये गिराती भी हैं तो उठाती भी हैं,
फिर सँभलकर भी चलना सिखातीं हमें।
जिन पे चढ़कर बुज़ुर्गों को मंज़िल मिली,
ये उसी राह पर ले के जातीं हमें।
इन तज़ुर्बे की आँखों से देखो ज़रा,
ज़िंदगी भर का 'मंज़र' दिखातीं हमें।
