शहरों की ज़िन्दगी
शहरों की ज़िन्दगी
शिथिल शरीर,
सक्रिय मस्तिष्क,
एक कश्मकश,
दोनो के बीच।
बंद पलकें,
घूमते विचार,
थकी आखें,
खुलने को तैयार।
शहरों की ज़िन्दगी,
एक भाग दौड़ ,
हर जगह,
बस पैसों की होड़।
मिला क्या ?
ढेरों बीमारियाँ,
बंद हवा,
कम उम्र की तैयारियाँ।
दो कमरों में ,
बीत गई ज़वानी ,
एक कमरे में बची,
बुढ़ापे की निशानी।
आई नई पीढ़ी,
हुआ वही संग्राम,
हमें क्या मिला ?
दो कमरों का मकान।
एक मृग मरीचिका,
एक भ्रमित स्वपन,
शहरों की ज़िन्दगी,
एक झुलसती तपन।