STORYMIRROR

Aryavart Prakash

Drama

3  

Aryavart Prakash

Drama

उदासी

उदासी

1 min
311

एक उदासी 

आसमां से,

मेरे आँगन में आ गिरी।

वो कीचड़ सी,

उसकी छींटे,

मेरे आँगन,

मेरी रूह से जा लगी।


कभी रूह की

उदासी से 

नज़रें हटाता हूँ तो,

आँगन में 

बिखरी हुई 

उदासी दिख जाती है।


उसके दाग 

उसके धब्बे

मिटते नहीं।

काम पर,

कलम की,

स्याही में।


बस स्टैंड पर,

पीछे मेरी,

परछाई में।

ट्रेन में,

यादों की,

पुरवाई में।


जहाँ जाता हूँ,

मेरी रूह से लिपटी,

चली आती है।

ये उदासी मुझे,

अकेला नहीं छोड़ रही।

ये फुंसी के,

फूटने के बाद,

फोड़े जैसा हो रही,

धीरे धीरे जानलेवा,

होती जा रही।


कहाँ तक भागूं

खुद से, अपने घर से,

आखिर शाम को,

तो जाना घर ही है।

रहना मुझे तो,

अपने रूह के,

साथ ही है।


ये उदासी,

हर दिन मुझे,

एक मुर्दा बना रही।

मेरे चेहरे पर आती है,

बन ठन कर,

सज संवर कर,

पर आंखवाले,

अंधे लोग,

देख नहीं पाते।


पढ़े लिखे,

गवार लोग,

उसे पढ़ नहीं पाते।

मेरे चेहरे पर,

मेरी उदासी,

मुस्कुराती रहती है।


काश इसकी,

आदत से पहले,

इसकी कोई,

दवा मिल जाए।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Drama