पहली अधूरी एक तरफ़ा मोहब्बत
पहली अधूरी एक तरफ़ा मोहब्बत
उसकी उंगलियों को देखा था मैंने,
दूसरे की उंगलियों की पनाह लेते हुए।
कदमों को देखा था उसके मैंने,
किसी और के साथ चलते हुए।
मैंने सुना था उसके लबों को,
किसी और का ज़िक्र करते हुए।
उसकी खुशी देखी थी मैंने,
किसी और का नाम लेते हुए।
हाँ ,थी वो मेरी पहली अधूरी,
एक तरफ़ा मोहब्बत।
या अगर कहूं तो, है आखिरी अधूरी,
एक तरफ़ा मोहब्बत।
दिल बस जलता रहा अंदर ही अंदर,
उसे किसी और के साथ देखकर।
और कभी हिम्मत भी नहीं हुई,
कुछ बोलने की,
सामने उससे कभी देखकर।
उसकी आँखों को तलाश थी,
भरी भीड़ में किसी और की।
उसकी डायरी में मैंने देखी थी,
छिपी तस्वीर किसी और की।
>
वो करती है किसी और से,
बेशुमार बेइंतेहा मोहब्बत।
उसकी हाथों को करते देखा है,
किसी और की इबादत।
खुश रहता हूं अब तो चेहरे से,
उसकी चेहरे की खुशी देखकर।
हर लम्हा जिया करता हूं आजकल,
घूंट विष का मैं पी पीकर।
कत्ल होती है मेरी खुशी की हर पल,
एक दर्द आए दिन गहरा होता है।
कुछ फासले होते है ऐसे भी,
सामने रहते हुए एक शख्स
अपना न होता है।
किससे अपना ये दर्द सुनाऊं,
कैसे मर मर के कोई जीता है।
चेहरे पर हँसी लेकर कोई,
अश्क दर्द में कैसे पीता है।
उसे हक से छूने की मुझे,
आज भी नहीं है इजाज़त।
है कुछ ऐसी मेरी पहली अधूरी,
एक तरफा मोहब्बत।