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साल के बारह महीने

साल के बारह महीने

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जनवरी का आना, हीटर लगाना,

गरम पानी में नहाना,

रजाई की गर्मी में झट से घुस जाना।


फरवरी में मौसम की थोड़ी ढिलाई,

ओढ़ लिए कम्बल अब छोड़ी रजाई,

वैलेंटाइन डे पे उन की याद आई।


मार्च में मौसम है हर दिन सुहाना,

वो गर्मी की आहट और सर्दी का जाना,

वो होली के रंगों में जम कर नहाना।


अप्रैल के आते पसीने का आना,

वो गर्मी का आना और कूलर लगाना,

दोस्तों संग मस्ती, अप्रैल फूल मनाना।


मई की लू हमको भरसक सताती,

बिन ए सी के हमें नींद न आती,

ठंडी वो लस्सी हमें खूब भाती।


जून में गर्मी से रहत न पाना,

छुट्टी में पहाड़ो की तरफ जाना ,

आते ही फिर गर्मी का दर्द पाना।


जुलाई की बारिश में जम कर नहाना,

घटा

ओं का छाना, बादलों का गड़गड़ाना ,

फुहारों से मन का वो आनंद पाना।


अगस्त के मौसम में झरनों का भरना,

नदियों का तांडव वो लहरें उछलना।


सितम्बर में हर तरफ हरियाली का छाना,

 वो फूलों की खुशबू बहारों का आना,

वो उनका थोड़ा सट के यूं ही बैठ जाना।


अक्टूबर के आते ही गर्मी का घटना,

वो पंखे चलाना वो ए सी को ढकना,

दशहरे दिवाली की तिथिओं को तकना।


नवंबर में सर्दी की दस्तक है आती,

वो कम्बल रजाई बाहर निकल जाती।


दिसंबर में मन को नहाना न भाता,

वो ठंडी वो दादी का खांसी से नाता,

वो सर्द हवाओं से जैकेट बचाता।


पतझड़, सावन, बसंत, बहार,

ये है चारों मौसम का हाल,

साल के बारह महीने,

बारह महीनों का साल।


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