जन्मदिवस
जन्मदिवस
न जाने कितने ही बालक अपने घरों से भाग कर,
या फ़िर भगा दिये जाते हैं,
बैठ रेलगाड़ी में उतर जाते किसी स्टेशन पर,
ले लेते हैं शरण रेलवे के प्लेटफ़ार्म पर।
भर पानी ख़ाली बोतलों में बेच देते हैं,
भरते पेट उन्हीं चन्द पैसों से,
करने लगते नशा भी ले मोची से,
जूता चिपकाने वाला पदार्थ तरल
एक स्टेशन पर देख़ बालकों की यह दशा,
ठानी उस स्त्री ने करने की उनकी सहायता,
खोला उसने एक होम सहायता से
चन्द साथियों की।
आ गये रहने वहाँ बालक तीस,
मिलता था खाना, कपड़ा, साबुन, तेल सभी,
स्कूल की भी थी कर व्यवस्था,
थे ख़ुश बालक परन्तु फ़िर भी करते नशा चुपके से।
हुई दुखी वह स्त्री; संमस्या थी गहन,
सलाह ली साथियों से, कुछ न निकला समाधान,
आख़िर ली गई सहायता मनोवैज्ञानिक की,
वह भी न छुड़ा पाईं नशा उन बच्चों का।
सोचा फ़िर उस स्त्री ने नहीं हैं ये बालक,
भूखे खाने के; हैं भूखे प्यार व सम्मान के,
चाहिये मिलना इन्हें वही प्यार व सम्मान,
जो है मिलता हमारे घर के बालकों को।
कर निश्चय किया अमल अपने निश्चय पर,
पूछी गई सभी से उनके जन्म की तिथि ,
किसी ने सही बताया होगा तो किसी ने गल्त,
परन्तु हुये सभी उत्साहित बता अपनी जन्म तिथि।
फ़िर क्या था लगा मनाया जाने जन्मदिवस,
एक एक कर सभी बालकों का, बनते नये कपड़े
होम सजाया जाता ग़ुब्बारों से,
बनते व्यंजन बालक के मनपसन्द, कटता केक भी।
मनाया जाता जब भी जन्मदिवस उस स्त्री के घर किसी का,
या होती पार्टी जन्मदिवस की किसी साथी के यहाँ,
होते निमंत्रित बालक सभी होम के,
खेलते कूदते आन्नद लेते जन्मदिवस की पार्टी का।
जन्मदिवस ने किया जादू, छूट गया नशा,
जागी भावना उनके मन में कि चाहता है समाज उन्हें भी,
हैं वो भी एक हिस्सा इस देश और समाज का,
लगे करने अध्ययन जी जान से कुछ बनने की चाह में।
