प्रणय पथ
प्रणय पथ
विरह के प्रणय पथ पर
मिलने के असंख्य वचन
अब मन में मिथ्या लगते हैं।
देखने के त्वरित प्रयत्न
अब नेत्रों में खंजर लगते हैं।
नित्य बहते आँसू का स्वाद
अब खारा समुद्र लगता हैं।
कहने के अति मीठे शब्द
अब जिह्वा पर विष लगते हैं।
प्रेम में मिलने कि उत्सुकता
अब हृदय में व्यवधान लगती हैं।
सान्निध्य से उभरता रिश्ता
अब भीतर से ग्रसित लगता हैंं।
व्यथा से प्रवाहित शरीर
अब अड़चनों का बोझ लगता हैं।
