आशा-निराशा
आशा-निराशा
विपरीत अर्थ वाले मन के ये दो भाव आशा और निराशा,
हैं सक्षम कर देने में दिशा को जीवन की अलट-पलट,
होता है प्रादुर्भाव आशा का जब, बीज निराशा का बो जाता है तभी,
न मिलने पर आशातीत परिणाम हो जाता है अंकुरित बीज निराशा का।
हर किसी रिश्ते से होती हैं आशा, पूर्ण न होने पर बिगड़ जाते हैं रिश्ते,
परन्तु रिश्तों से बड़ी तो नहीं है आशा, जोड़े रखें रिश्ते छोड़ दामन आशा का,
जीवन की नैया को आगे खेने की शक्ति मिलती है इन्हीं रिश्तों के प्यार से,
बटोरते चलो प्यार, बाँटते चलो प्यार, बहाकर आशा के पिटारे को कहीं।
करते हैं आशा हम अपने आप से भी, भागते है करने तैयारी आई.आई.टी. की,
लगे रहते हैं कोचिंग सेन्टर में दिन- रात मेहनत से पढ़ाई करने में,
नहीं मिलता फल आशा
अनुरूप तो कर लेते हैं आत्मदाह,
सूनी ऑंखों से टकटकी लगाये, झूठी आस लगाये बाट जोहते रहते हैं माता-पिता।
मिले दहेज आशा से कम तो कर देते हैं समाप्त जीवन लीला पत्नी की,
करते हैं आशा माता-पिता अपने पुत्र व पुत्र वधु से सेवा की बुढ़ापे में,
न होने पर सेवा आशा अनुकूल बुझ जाते हैं दीप आशा के बैठे थे जो जलाये,
छा जाता है अंधकार निराशा का, नहीं सूझती दिशा कोई घनी काली रात में।
सींचते रहो प्रेम के जल से रिश्ते खून के या मित्रता के दे तिलांजलि आशा को,
बस बना जीवन कर्म क्षेत्र अपना करते रहो कर्मठता से कर्म सभी जीवन पथ के,
साधो लक्ष्य अर्जुन की भाँति, छोड़ दो चिन्ता फल की श्री कृष्ण पर,
है करना कर्म अपने हाथ में, दिया ज्ञान यही दिव्य गीता में श्री कृष्ण ने।।