मुसाफिर
मुसाफिर
मुसाफिर हूं वहां का
जहाँ कोई जाना नहीं चाहता
मौत ऐसी एक मंज़िल है
जिसे कोई पाना नहीं चाहता
क्यों बेवजह हम उससे डरते
भागते रहते है
दोस्तों वो तो नसीब में लिखी गई है
वो आनी ही आनी है
चलो ना उससे डरने से अच्छा
उसे साथ लेकर चले
उसका ग़म ना लेकर जीवन में
कुछ कर दिखाने की राह पर चले
नाम कमाए ऐसा की चारों ओर
अपना ही शोर हो
तन मिट जाए भले ही अपना
पर याद करने वाले चारों ओर हो
मरने के डर से नहीं
कुछ करने की चाहत से हमारा
नाम रौशन हो
मिटा दे इस पाप भरी दुनिया को
एक नई सुकून सी दुनिया बनाए
ना डर डर के कोई जिए
सब के अंदर कुछ कर दिखाने का
हौसला जगाए
