" हमारी प्यारी विविधता "
" हमारी प्यारी विविधता "
विविधता से रूप निखरता है
नित नये अंदाज़ में जीवन सँवरता है !!
ग्रीष्म के ताप से खलबली मच जाती है
फिर वर्षा की बूंदों से तपिश मिट जाती है !!
रात के साये में हम स्वप्नों में खो जाते हैं
सूरज की किरणों के स्पंदन से
सबके सब जग जाते हैं !!
कविताओं में भी रसों का समिश्रण होता है
एक रस में ही सुनने से सबको बुरा लगता है !!
कभी शृंगार की बारी तो कभी
हास्य रस का रूप
होता है कभी रौद्र वीभत्स
अद्भुत करुण से रूप बनता है !!
विविध रंगों और रूपों से अपनी दुनियाँ सजी है
विविधता में हमारी वर्षों से एकता छिपी है !