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Sanjita Pandey

Abstract Classics Inspirational

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Sanjita Pandey

Abstract Classics Inspirational

अनकहा

अनकहा

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‌वह जो अनकहा सा

रह गया था

क्या तुमको भी चुभता है?

वह छत के कोने वाली खिड़की

से मुझे छुप छुप कर देखना,

इतनी दूर से भी

मुझे तुम्हारी निगाहें

महसूस होती थी,

 क्या ? तुम्हें


मेरी आंखों के घूमडतें

सावन कभी दिखाई नहीं दिए

उस राह से जब गुजरते थे

तो मेरे कदम रुक रुक के

चलते थे।


कभी यह कम होती रफ्तार

तुमने महसूस की थी?

जाते-जाते भी तुमने

पुकारा नहीं,

मैं खड़ी थी वही इस इंतजार में

 तुम बोल दोगे कि हां मैं भी हूं

 तुम्हारे प्यार में।


मुझे भी बहुत कुछ कहना था

तुम्हारे चेहरे के भावों को पढ़ना था।

वह मासूम सी मुस्कुराहट

जिसके कायल थे हम

कई बार मुट्ठी में भरे गुलाल लिए

करते रहे तुम्हारा इंतजार हम।


लेकिन तुमने तो अधूरा ही

छोड़ दिया था मुझे।

आधा तुममे थी

आधी ही रह गई थी अपने संग।


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