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Sanjita Pandey

Abstract

4.1  

Sanjita Pandey

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हम औरतें

हम औरतें

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434


अकुलाहट अंतर्मन की 

अब व्यक्त करने लगीं हैं,

हम औरतें भी 

अब अपनी बात कहने लगीं हैं,


परिवार के हर मामले में 

अपने विचार व्यक्त करने लगीं हैं,

यह सही है यह गलत है

खुल के कहने लगी हैं,

हम औरतें भी अब

 अपनी बात कहने लगीं हैं,


क्या पढ़ना है 

क्या पहनना हैं 

आज सुबह जरा देर से उठना है

 बेझिझक अब ये कहने लगीं हैं,

हम औरतें भी अब 

अपनी बात कहने लगीं हैं,


पराए घर जाना है , 

पराए घर से आई है, 

कहने वालों से

यह घर मेरा है 

अब मुस्कुरा कर कहने लगीं हैं,

हम औरतें भी अब 

अपनी बात कहने लगीं हैं,


स्वच्छंदता विचारों की

अभिव्यक्ति की आजादी होती है,

यह बात भी अब ये

तेज आवाज में कहने लगीं हैं,

हम औरतें भी अब 

अपनी बात कहने लगीं हैं,


चूड़ी, बिंदी -झुमके के बिना भी 

अब ये निखरने  लगीं हैं,

बेझिझक ये भी अब 

आत्मविश्वास का गहना 

पहनने लगीं हैं ।

हम औरतें भी अब 

अपनी बात कहने लगी है।


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