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Sapna (Beena) Khandelwal

Tragedy Classics Inspirational

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Sapna (Beena) Khandelwal

Tragedy Classics Inspirational

कान्हा तेरी कालिंदी

कान्हा तेरी कालिंदी

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कान्हा तेरी कालिंदी अब पल पल कितना सिसकती है

 नीर नंयनों के इससे ,  जलधाराएं अब सजती हैं।

 तीव्र वेग आलोक तेज नाची थी तब झूम झूम

 धन्य हुई जो तेरे बाल चरणों को तब चूम चूम

 वेणु की उन तानों को स्मृति में धरती है।

 कान्हा तेरी कालिंदी अब पल पल कितना सिसकती है।


 तब तो कालिय नाग से जल था विषैला हुआ

 अब तो बिन अहि के ही जल जहरीला हुआ।

 तब तो चक्रधारी तूने विष को हर लिया

 अब तो मैंने हर छन ही विष को है पिया

 संग मेरे आहत इन जलचरों की भी बस्ती है।

 कान्हा तेरी कालिंदी अब पल पल कितना सिसकती है।


 लहरों पे मेरी मंत्रमुग्ध तू कितना था हुआ

 जीवन में मुझको अपने स्थान दे दिया।

 मेरी ये ऊर्मियाँ निर्मल अब ना रहीं

 यम भगिनी आज अपनी सांसों को तरस रही

 ये रवि तनया देख तो नारकीय जीवन जीती है।

 कान्हा तेरी कालिंदी अब पल पल कितना सिसकती है।


 हर हर यमुने के उदघोषों से गूंजता था तट मेरा

 तृप्त पशु पंछी भी हो जाते थे जल पी के मेरा।

स्नेहमयी मां बन के मैंने सदैव ही दिया

 पर मानव ! तूने तो मुझको जहर दे दिया

 ये मां तेरी करनी पर कितना बिलखती है।

 कान्हा तेरी कालिंदी अब पल पल कितना सिसकती है।


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