रंगों का ये त्यौहार
रंगों का ये त्यौहार
फागुन का आगाज हुआ है
चली बयार है मतवारी।
बसंत ऋतु भी थिरक उठी है
जब थाप बजी है ढोलक की
महक रही बगिया पुष्पन की
छटा दिखे है बहु रंगन की।
प्रीत की गागर छलक रही है
अबीर गुलाल बदरिया घुमड़ रही हैं।
खुश हो हो सब चहक रहे हैं
चंदन सुगंधि से सब महक रहे हैं।
तान छिड़ी है तबला सारंगी की
गजब बजी है यह मृदंग भी।
धमाल मच्यौ है ब्रज गलियन में
धूम मची है या होरी में।
श्यामा श्याम की शोभा न्यारी
सृष्टि जाए इन पर बलिहारी।
मुरलीधर ने केसर कलश में बोर दई पिचकारी
फिर राधे जू पर रंगन की बौछार है मारी।
वृषभानु लली ने पीछे से धावा तब बोला है
संग सखियों के नंदलाल को आकर घेरा है।
प्रियतम पर रंग जो बरसे हैं
नैना मेरी राधा के हरषे हैं।
खुशबू केसर की मन तृप्त करे है
सबको यह आकृष्ट करे है।
टेसू के फूलों का भी रंग बरसे है
मस्त सुगंधि से इसके तन मन भीगे हैं।
हर्ष उल्लास के स्वर गूंजे हैं
रसिया होली के क्या खूब गूंजे हैं
सब कोई यहां पर नृत्य करे हैं
दिल में सबके उमंग भरे हैं।
रंग अनेक बिखर रहे हैं
हंस हंस के गले मिल रहे हैं।
गुझियों के तो थाल भरे हैं
कांजी के घट खूब सजे हैं।
बिहारी जी की वो फूलों की होली
बरसाने की लट्ठमार वो होली
ब्रज में होती ये लड्डू होली।
रंग भरी ये सारी होली
भेदभाव सब मिटा देती हैं
नव जीवन सब में भर देती हैं।
हर कोई अपना सा है लगे
रंग में डूबा संसार लगे।
मेल मिलाप का यह त्यौहार
रंगों का ये प्रिय त्यौहार।
यूं ही रहे बस बरकरार
प्रेम प्रफुल्लित हों सबके जीवन।