वो मूर्ति नही, है इंसान
वो मूर्ति नही, है इंसान
मुख लटकाए क्यूं बैठे हो , जब से कन्यारत्न हुआ है
भाग उदित हुआ तुम्हारा , कैसा शुभ संजोग हुआ है!
अद्भुत कृति से , प्रकृति की जगमग तुम्हारा सदन हुआ है
नन्ही कली के आगमन से , पत्ता पत्ता झूम उठा है!
आज तुम्हारे अंक में आकर , जब ये इस जग में जागे
तब तुम तनय तनय करके , सुत के पीछे क्यूं कर भागे!
नन्ही परी जब पकड़कर उंगली , अंगना में रुनक झुनक रुनझुन भागे
तब तुम समझो ओ रे मानव ! सोए भाग तुम्हारे जागे!
जैसे ही शिक्षा के मंदिर जाती हैं ये सुता तुम्हारी
छोड़ के लड़कों को पीछे कहती हैं , अब बारी हमारी
नित नव नव सोपान चढें गर्व से उन्नत भाल करें
बोलो पुत्र से क्या कम हैं , जब चहुं दिसि में ये नाम करें!
ठान लक्ष्य को लेती हैं , पूरा करके दम लेती हैं
क्षेत्र अछूता न
हीं है कोई , हर क्षेत्र में आगे बढ़ लेती हैं!
सहनशक्ति में पृथ्वी जैसी , त्याग , बलिदान में मणिकर्णिका
कभी बन लक्ष्मीबाई मिट जाती हैं अपनी आन पर
कभी देश चलातीं देखो कैसे सीना तान कर!
कभी पर्वत पर चढ़ जाएं , दुर्गम बाधा पार कर
कभी दूर अंतरिक्ष में उड़ जातीं , बैठ अंतरिक्ष यान पर!
मान करो , अभिमान करो अपने इस अभिमान पर!
वक्त पड़े पर जगदंबा का ये तो दिव्य रूप धरे
वक्त पड़े पर चंडी बनकर दुष्टों का संहार करें!
दिन एक ऐसा भी आता , जब बनती हैं ये पहचान तुम्हारी
पहचान तुम्हारी बन करके , ये तुम्हें अमर कर जाती हैं!
प्रेम के चक्षु से देखो , स्नेह का सावन दे दो
अपनी प्यारी सी बिटिया को , उसका तुम हक दे दो!
नारी शक्ति ही निहित है , सृष्टि के संचालन में
वो मूर्ति नहीं , है इंसान इस अग जग में!