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Sapna (Beena) Khandelwal

Inspirational

3.8  

Sapna (Beena) Khandelwal

Inspirational

वो मूर्ति नही, है इंसान

वो मूर्ति नही, है इंसान

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मुख लटकाए क्यूं बैठे हो , जब से कन्यारत्न हुआ है 

 भाग उदित हुआ तुम्हारा , कैसा शुभ संजोग हुआ है!

 अद्भुत कृति से , प्रकृति की जगमग तुम्हारा सदन हुआ है

 नन्ही कली के आगमन से , पत्ता पत्ता झूम उठा है!

 आज तुम्हारे अंक में आकर , जब ये इस जग में जागे 

 तब तुम तनय तनय करके , सुत के पीछे क्यूं कर भागे!

 नन्ही परी जब पकड़कर उंगली , अंगना में रुनक झुनक रुनझुन भागे

 तब तुम समझो  ओ रे मानव ! सोए भाग तुम्हारे जागे!

 जैसे ही शिक्षा के मंदिर जाती हैं ये सुता तुम्हारी

 छोड़ के लड़कों को पीछे कहती हैं , अब बारी हमारी

 नित नव नव सोपान चढें गर्व से उन्नत भाल करें

 बोलो पुत्र से क्या कम हैं , जब चहुं दिसि में ये नाम करें!

 ठान लक्ष्य को लेती हैं , पूरा करके दम लेती हैं

 क्षेत्र अछूता न

हीं है कोई , हर क्षेत्र में आगे बढ़ लेती हैं!

 सहनशक्ति में पृथ्वी जैसी , त्याग , बलिदान में मणिकर्णिका 

 कभी बन लक्ष्मीबाई मिट जाती हैं अपनी आन पर

 कभी देश चलातीं देखो कैसे सीना तान कर!

 कभी पर्वत पर चढ़ जाएं , दुर्गम बाधा पार कर

 कभी दूर अंतरिक्ष में उड़ जातीं , बैठ अंतरिक्ष यान पर!

 मान करो , अभिमान करो अपने इस अभिमान पर!

 वक्त पड़े पर जगदंबा का ये तो दिव्य रूप धरे

 वक्त पड़े पर चंडी बनकर दुष्टों का संहार करें!

 दिन एक ऐसा भी आता , जब बनती हैं ये पहचान तुम्हारी

 पहचान तुम्हारी बन करके , ये तुम्हें अमर कर जाती हैं!

 प्रेम के चक्षु से देखो , स्नेह का सावन दे दो

 अपनी प्यारी सी बिटिया को , उसका तुम हक दे दो!

 नारी शक्ति ही निहित है , सृष्टि के संचालन में

 वो मूर्ति नहीं , है इंसान इस अग जग में!


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