कर्म और फल
कर्म और फल
बैठ किनारे पर मंजिल नहीं मिला करती
लहरों से डर डर कर राहे नहीं बना करती
प्राप्ति को लक्ष्य की अपने,
सागर में उतरना ही पड़ता है।
भला बिना तपे ही कहीं
कुंदन भी सोना बनता है।
केवल प्रार्थना के स्वर ऊंचे कर देने से
आशीर्वाद नहीं मिला करते,
गहराइयों से दिल की पुकारे बिना
प्रभु की आशीष भी नहीं मिलती।
असाध्य नहीं है मंजिल तुम्हारी
श्रम साध्य बना लो इसको।
नेकी, सच्चाई, ईमानदारी संग करके मित्रता,
जब कर्तव्य पथ पर अग्रसर तुम होंगे।
तो ये सारी कायनात भी देगी साथ तुम्हारा।
पाने को अपना भाग्य फल
कर्म पथ पर बिना रुके ही चलना होता है।
रे मानव, बात बात पर
ये तो था भाग्यवदा,
कहकर स्वभाग्य को दोष क्यों देता है।
उचित कर्म करने से तो
भाग्य भी बदल जाया करते हैं,
होने से कर्म विमुख ,
भाग्य साथ भी छोड़ जाया करते हैं।
नेत्र बंद करके भी करता भरोसा
जग पर,
फिर दोष भाग्य को देता है।
याद रख, गया वक्त
फिर हाथ कभी ना आता है।
जाने ना दे तू एक पल को भी व्यर्थ,
जीवन के हर पल को सार्थक करने में
लगा दे अपनी सामर्थ्य।
जो क्षण आज है वह तो अगले ही
क्षण अतीत बन जाता है,
यह पल ही तो तेरे भविष्य निर्माण में,
योगदान अपना दे जाता है।