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Sonam Kewat

Abstract

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Sonam Kewat

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मैं लाजवाब हूं

मैं लाजवाब हूं

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कभी लोगों के तानों ने मारा 

कभी लोगों के बातों ने मारा 

कुछ ना हो सका तो कभी

जिंदगी में हालातों ने मारा 


मैं सब कुछ सहती गई 

मैं अक्सर चुप रहती गई 

कुछ ना हो सका तो मैं

खुद को कसूरवार कहती गई 


हाथ छुड़ाने वाले अपने देखे 

प्यार में नफरत के नगमें देखें 

कुछ ना हो सका तो मैंने

कभी न टूटने वाले सपने देखें 


जिसे तोड़ा वो कमजोर थी

शायद कोई नाजूक सी डोर थी

कुछ ना हो सका तो समझो

वो शख्स तो कोई और थीं


जिसे तोड़ ना सके वो ख्वाब हूं 

तुम्हारे सवालों का जवाब हूं 

कुछ ना तो इतना समझ लो 

कि मैं खुद में ही लाजवाब हूं.


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