तलाश
तलाश
सर्वगुण सम्पन्न यहाँ एक ईश्वर है,
अभी उससे मेरी मुलाकात बाकी है।
वही है सभी का इस जगत में रहनुमा,
वही मुकम्मल बेदाग बाकी सब दागी हैं ।।
खुद से ही आज अब तक गैर हुआ हूँ,
अभी खुद से खुद की तलाश बाकी है।
बहुत सी है शिकायतें आज भी खुद से,
भले गुजरे जमाने की राख भी नही बाक़ी है।।
वक्त का क्या है कभी हंस कर कभी रो कर,
गुजरता है गुजर रहा पर कुछ अरमान बाक़ी है।
बहुत लड़ लिया बेदर्द जमाने से चीख चीख कर,
अभी जिसे पत्थर मारे वो पागल बनना बाक़ी है।
कोई लौटा दो बीते वक्त और बिछड़े यारों को,
उनके बिना जमाना अधूरा भले रौनकें काफी है।
मदमस्त है लोग हुस्न और दौलत के नशे में चूर,
पर कौन उन्हें समझाए अभी इम्तिहान बाक़ी है।
बवंडर सी हवा बनकर बहना स्वभाव नही,
खुद में सिमट कर बैठूं तो सरासर गुस्ताखी है।
मिल जाएं बिछड़े यार कभी किसी मोड़ पे तो,
सब हाले दास्तां हो ब्यान जो अब तक बाक़ी है।।
सब खुशी गम के इर्द गिर्द घूमे जो किस्से यहाँ,
इस से हटकर भी कहीं बसती कोई जिंदगानी है।
चल चलकर तलाश लें वो बहारें गुलसितां में जाके।
जिसे तलाशती हर भटकती अधूरी कहानी है।।