आओ घमंड का परित्याग करें
आओ घमंड का परित्याग करें
बदल रहा है नित ये जमाना,
गिरगिट की तरह रंग बदलता।
बढ़ रही रोज उम्र की फिक्र नही,
तू घमंड में जीने का ढंग बदलता।।
आज बन शेर तू खोल छाती घूमता,
घमंड में सर न नीचा होने देता कभी।
कल थिरकने लगेंगी जब टांगे तेरी प्यारे
तब न ये घमंड तेरा काम आएगा कभी।।
आज भले दिखा कर रोब तू आँखों का,
लाख डराता धमकाता हो इस जमाने को
कल झुर्रियां होंगी मद्धम होगी रोशनी तेरी
तब याद आएगी पर होगा न कोई समझाने को।।
आज भले तोड़ दें हाथ तेरे विशाल चट्टान भी,
कड़क आवाज सुन तेरी सहम जाता हो कोई।
लाख हो सामने तेरे चुप्पी आलम छाया हुआ,
पर सुना नही घमंडी को सहज अपनाता हो कोई
जब यहीं सब खाक में मिल जाना है तो,
छोड़ इतराना मंडराना घमंडी बनकर तू।
वक्त के धारा प्रवाह को समझ सुख दुःख बाँट,
क्या पाएगा व्यर्थ घमंड की गांठ कसकर तू।।
ये घमंड तेरा तुझको पथभ्रष्ट ही बनाएगा,
भीतर लालसा लालसा ही सिर्फ पोषित होगी।
जब तक अग्नि जलेगी भीतर पश्चाताप की,
तब तक दुनिया ये तेरे व्यवहार से शोषित होगी।।