STORYMIRROR

Dev Sharma

Thriller

4  

Dev Sharma

Thriller

मुस्कान

मुस्कान

2 mins
687

बहुत दिनों से सूने पड़े हैं ओंठ

खिल जाने दे मुस्कान हल्की सी

इस निविड़ बने जीवन में फिर से

आनंद की इक लहर बह जाने दे।।


उपज लेने दे अंतस में गीत मधुर,

व्यथा को आँसू बन बह जाने दे

इस पीड़ा के साम्राज्य से बाहर निकल,

फैल जा विस्तार लिए असीम आकाश का।।


कब तक यूँ मर्म का सागर बन कर,

शोक लहर को उठाते जाओगे,

मद्धम ही सही दीपक की लौ से सीख,

अंतिम सांस तक उल्लास भर कर जी।।


विकल विकल नित घूमता फिरता,

खिन्नता का हृदय पे अपने भार लिए

सब कुछ है गीत लेखनी कल्पना पास में

उठ सम्भाल अपने ओंठो की कम्पन्न को


भले टूटे है वीणा के तेरे तार तो क्या,

कुछ तान तो शेष अवशेष है उसमें

चल मायूसी हटा उंगलियों का स्पर्श दे

रुंधे गले को स्वतन्त्रता का आभास करा

 औरों की वेदना का मोल कौन जाना है

 न ही नयनो से किसी के पानी बह पायेगा


 नही नेह स्नेह यहाँ कहीं बाजार में बिकता

चल मुस्कान से किसी एक को तो अपना बना

तेरे मन मुताबिक तुझे कुछ मिल जाये

ये जरूरी तो नही,न उम्मीद रख

तेरी मुस्कान तेरी कहानी बयां करेगी


चल चलकर अपने अरमान पूरे करले

उठ इस मद्धिम पड़े दीपक को हवा दे

इस हल्के प्रकाश बिम्ब से जीवन ज्योतजलने दे

अपने मुख मण्डल पर रख आभा मुस्कान की

 छोड़ जमाना जो कहता कहने दे


तू अपने मन का बस मीत बन जा

देख निर्मल वक्त का अविरल झरना बहता,

चल रुआंसा सा जाकर ये मुँह धो

 मेहनत का हाथ हल पकड़ ले

 मुस्कान बीज झोली में भर ले


चल खेत बीजते खुशियों का चलकर

अब दिन चढ़ आया छोड़ सुस्ताना

 मन उड़ता है तो उड़ जाने दे

इस निविड़ बने जीवन में फिर से

आनंद की इक लहर बह जाने दे।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Thriller