बेड़ियां या बंधन
बेड़ियां या बंधन
बेड़ियां क्या होती हैं
शायद एक तरह का बंधन हैं
किसी ने लिखा मेरा सोलह श्रृंगार मेरी बेड़ी हैं
नहींं, मेरे सोलह श्रृंगार नहीं है बेड़ियां,
मेरे नारी होने का अस्तिव है
मेरी पहचान हैं ये सोलह श्रृंगार
मेरे कदमों में पायल, मेरे होने का वजूद है
मेरी बिंदिया मेरे माथे का नूर है
मेरे हाथों की मेंहदी, माथे का सिंदूर
पैर के बिछिए, मेरा अपने पति के प्रति प्रेम है
ये सब श्रृंगार मेरा उनके लिए समर्पण है
बेड़ियां नहीं बंधन नहीं
क्यों रहूं मैं बेड़ियों में, जब मैंने ही मानव को जन्म दिया
मेरे घर की चार दिवारी मेरी बेड़ियां नहींं
मेरा आशियाना है
जहां सब को सुकून मिलता है
जहां मैं किसी की बेटी, बहन,
मां, बहू, और भी कई
रिश्तों और नामों से पुकारी जाती हूं
एक आवाज़ पर मैं थिरकती हुई
अपने होने का अहसास कराती हूं
मुझे शर्म नहीं कि मैं नारी हूं
ना किसी का डर, मैंने ही तो तुम को
सृजित किया है, तो तुम से कैसा डर
माना की कई बार तुम अपनी मर्यादा भूल जाते हो
फिर मैं ही तो चंडी बन कर
तुम को फिर मर्यादा में लाती हूं
फिर क्यों सोचूं मैं बंधन में हूं
कि मेरे पैरों में बेड़ियां है
तुम लोग ही अपनी कमी को
छुपा कर मेरे पहलू में आ कर छुपते हो
मेरे अंदर ही इतनी सहनशीलता हैं
मैं ही अपना दर्द छुपा कर तुम को
इस धरा को देखने का सौभाग्य देती हूं
तुमको चलना सिखाती हूं
इस जीवन को जीना सिखाती हूं
मुझे अपने पर गर्व है कि मैं नारी हूं
मैं किसी अलग पहचान की मोहताज नहींं
मैं खुद एक पहचान हूं।