किताब
किताब
किताब निहित
इसमें जीवन का सार
हर दिल के ताने बाने को
शब्दों में पिरो कर
बनती किताब
कभी पूर्ण ,तो
कभी अधूरी सी होती किताब
कभी हमें सुनती ,
तो कभी कुछ कहना चाहती है किताब
गंगा की लहरों की तरह
कभी हंसती,तो कभी रुलाती है किताब
जितना पढ़ते
उतनी जिज्ञासा और
दिलाती किताब
हर भावों से परिपूर्ण होती किताब
प्यार की निशानी को
अपने अंदर संजोए रखती किताब
जन्म से मृत्यु तक का
हिसाब रखती है किताब
जीवन जीने के
हर अध्याय बारीकी से सीखती है किताब
इतिहास को जाने के लिए
कई ग्रंथ, महाकाव्यों के
रूप में आती है किताब
हर ज्ञान को अपने अंदर
अर्जित रखती है किताब
सागर से भी गहरी होती किताब
मगर हर मुश्किल से
बाहर निकलती हमें किताब
सच्ची साथी होती हैं किताब।