किस से पूछुं
किस से पूछुं
जिस भारत पे अपना सब कुछ लुटाया
आज मेरा वो भारत दिखता नहीं है
अब गांधी नेहरू भी चुप्पी साधे बैठे हैं
किस से पूछुं क्यों भारत वो दिखता नहीं है।।
कुछ अनर्गल सा ज्ञान बाँट कर,
दो भाग किये इस विशाल धरा के।
क्या जाता गर अभाज्य रहती माँ भारती,
अब लोग लगे समझने झूठ बहुत देर बिकता नहीं है
किस से पूछुं क्यों भारत वो दिखता नहीं है।।
जो हमें सीख दे छिन्न भिन्न कर भागे,
काश ये ज्ञान कुछ उन्हें भी सौंपा होता,
आज जो अपने मान सम्मान को तरसते,
वो भाव किसी धूरी पे टिकता नहीं है।।
किस से पूछूं क्यों भारत वो दिखता नहीं है।।
कभी सेकुलर राष्ट्र का नाम दिया,
कभी दुहाई दी धर्मनिरपेक्षता की,
कितनी सस्ती आज जाने हो गयी
इस चक्की का तोड़ कोई दिखता नहीं है।।
किस से पूछुं क्यों भारत वो दिखता नहीं है।।
बाहर से कोई लुटेरा आये तो लाठी रखें,
घर के भेदी से बोलो कैसे कोई जान बचाए,
त्याग भूले सावरकर,भगत सिंह और बोस का,
उन भेदियों का इतिहास कोई लिखता नहीं है।।
किस से पूछूं क्यों भारत वो दिखता नहीं है।।
आँखें बंद कर पद लोलुपता पीछे भागें,
मातृ वन्दन अभिनन्दन धूलधूसिर हुआ,
वेद-पुराण नीति को पढ़ना पढ़ाना त्याग,
कितनी विवशता घोटाला किसी को दिखतानहीं है ।।
किस से पूछूं क्यों भारत वो दिखता नहीं है।।
भले हम तब अनपढ़ थे मूर्ख अज्ञानी थे,
पर खुद की खुद गौरवमयी पहचान रखते थे,
जो जितना था सब का सब अपने हक का था,
आज अपना वो विश्वगुरु अस्तित्व दिखता नहीं है।।
किस से पूछुं क्यों भारत वो दिखता नहीं है।।