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Dev Sharma

Thriller

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Dev Sharma

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ऐ चाँद

ऐ चाँद

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ऐ चाँद ! आज जरा तू जल्दी आना,

देख अपने सौंदर्य पे न ज्यादा इतराना।

इक और चाँद भूखा प्यासा बैठा है यहाँ,

छुप बादल में कहीं रस्ता तू भूल न जाना।।


माना तू अनुपम है दूजा तेरा सानी नही है,

पर ये चाँद भी तो किसी मन का मीत है।

तू शीतलता का भले स्वामी है कहलाता,

पर ये भी तो किसी के मन भाता गीत है।।


तू गर परमार्थ का पर्याय बन कर चमके,

तो ये भी स्वामी भक्ति लिए निर्जल बैठी है।

तू तपस मन को शीतलता का दान है देता,

तो ये भी तो संबल बन पति को शक्ति देती है।।


देख फीकी न पड़ने पाए आभा उसके चेहरे की,

महकते फूल पे दाग न कोई कहीं लगने पाए।

उसने जिद्द पकड़ी है तेरे दर्शन पे पानी पीने की,

कहीं उसकी प्रतिज्ञा पे दाग कोई न लगने पाए।।


उसका सब साज श्रृंगार अपने साजन से है,

बिखरे न प्यार उसका जो सब साजन से है।

सात जन्मों का अटूट सम्बन्ध बनाया है जिससे,

उसके सब सपने अपने प्रिय साजन से है।।


ये मेहंदी रंगे हाथ पकड़े साथ पूजा का थाल,

खन खन खनकती चूड़ियों की धुन सुनते जाना।

माँग रही है सदा सदा को साथ अपने पिया का,

तुम बस दोनों को लम्बी उम्र की राह चुनते जाना।।


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