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AJAY AMITABH SUMAN

Abstract Thriller

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AJAY AMITABH SUMAN

Abstract Thriller

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग:40

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग:40

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दुर्योधन बड़ी आशा के साथ अश्वत्थामा के हाथों से पांच कटे हुए सर को अपने हाथ लेता है और इस बात की पुष्टि के लिए कि कटे हुए वो पांच सरमुंड पांडवों के हीं है, उसे अपने हाथों से दबाता है। थोड़े हीं प्रयास के बाद जब वो पांचों सरमुंड दुर्योधन की हाथों में एक पपीते की तरह फुट पड़ते हैं तब दुर्योधन को अश्वत्थामा के द्वारा की गई गलती का एहसास होता है। दुर्योधन भले हीं पांडवों के प्रति नफरत की भावना से भरा हुआ था तथापि उनकी शारीरिक शक्ति से अनभिज्ञ नहीं था। उसे ये तो ज्ञात था हीं कि भीम आदि के सर इतने कोमल नहीं हो सकते जिसे इतनी आसानी से फोड़ दिया जाए। ये बात तो दुर्योधन को समझ में  आ हीं गया था कि अश्वत्थामा के हाथों पांचों पांडव नहीं अपितु कोई अन्य हीं  मृत्यु को प्राप्त हुए थे। प्रस्तुत है मेरी कविता "दुर्योधन कब मिट पाया का चालीसवां भाग।

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अति शक्ति संचय कर ,

दुर्योधन ने  हाथ बढ़ाया,

कटे हुए नर मस्तक थे जो ,

उनको हाथ दबाया।

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शुष्क कोई पीपल के पत्तों

जैसे टूट पड़े थे वो,

पांडव के सर हो सकते ना

ऐसे फुट पड़े थे जो ।

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दुर्योधन के मन में क्षण को

जो थी थोड़ी आस जगी,

मरने मरने को हतभागी

था किंचित जो श्वांस फली।

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धुल धूसरित हुए थे सारे,

स्वप्न दृश ज्यो दृश्य जगे  ,

शंका के अंधियारे बादल

आ आके थे फले फुले।

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माना भीम नहीं था ऐसा

मेरे मन को वो भाये ,

और नहीं खुद पे मैं उसके,

पड़ने देता था साए।

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माना उसकी मात्र प्रतीति 

मन को मेरे जलाती थी,

देख देख ना सो पाता था 

दर्पोंन्नत जो छाती थी।

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पर उसके घन तन के बल से,

है परिचय कुछ मैं मानू,

इतनी बार लड़ा हूँ उससे

थोड़ा सा तो पहचानू।

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क्या भीम का सर ऐसे भी

हो सकता इतना कोमल?

और पार्थ ये हारा कैसे,

मचा हुआ हो अयोमल?

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अश्वत्थामा मित्र तुम्हारी

शक्ति अजय का  ज्ञान मुझे,

जो कुछ भी तुम कर सकते हो

उसका है अभिमान मुझे।

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पर युद्धिष्ठिर और नकुल है 

वासुदेव के रक्षण में,

किस भांति तुम जीत गए

जीवन के उनके भक्षण में?

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तिमिर  घोर  अंधेरा  छाया 

निश्चित कोई  भूल हुई है,

निश्चय  हीं किस्मत  में मेरे

धँसी हुई सी  शूल हुई है।

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दीर्घ स्वांस लेकर दुर्योधन

हौले से फिर डोला,

चूक हुई है द्रोणपुत्र,

निज भाग्य मंद है बोला।



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