STORYMIRROR

Sambardhana Dikshit

Tragedy Inspirational Thriller

4  

Sambardhana Dikshit

Tragedy Inspirational Thriller

तुमसे दूर जाना चाहती हूं

तुमसे दूर जाना चाहती हूं

2 mins
443


जब से मिले हो मुझे तुम

रहने लगी हूं मैं कहीं गुम

कहीं ये तुम्हारा असर तो नहीं

कि हर पल महसूस करती हूं तुम्हें यहीं

कुछ ख्वाब बुनती रही ख्वाबों में

कुछ हिम्मत थी बदलने की हकीकत में

हर हाल में तुम्हारा साथ था

कभी गिरी कहीं तो तुमने हाथ थामा था

न जाने क्यों आज ना वो हाथ ना साथ मेरे साथ है

जो खयाल कभी आया नहीं क्या यह वह हकीकत है

किस्से तुमने शुरू किए दूरियों के

और हमसे तुम्हें माफी चाहिए मजबूरियों के !!

तुमने कोशिश भी ना कि थोड़ी मुझे समझने की

मैं समझी समझाने की भूल कर बैठी

रूठी भी तो उससे रूठी जो न आए कभी मनाने

कच्ची जमीन पर मैं चली थी पक्का मकान बनाने

मेरी हर नज़र हर नज़राने में तुम ही थे

मैं बातें तुमसे करती पर तुम कहीं और गुम थे

गुमनाम तुम थे मगर बदनाम मुझे किया

बेपनाह प्यार का सिला तुमने मुझे इ

स तरह दिया

सही कहा था तुमने की खता मेरी थी

मेरे प्यार की पते की पता तुम्हें कहां थी

क्या मिला तुम्हें यूं मेरा दिल तोड़ के

क्या मिला तुम्हें यूं मुझे अकेला छोड़ के

मैं तो खुद से सारे नाते तोड़ चुकी हूं

मैं अपनी जान से हाथ धो बैठी हूं

काश मुझे खबर होती तेरी बेवफाई की

तो शायद आज मैं मजाक न बनती वफाई की

अब ना कोई जरूरत ना कोई जरूरी मुझे

हर हाल में मैं जी लूंगी यह दिखाना है तुझे

जो छोड़ के गए थे तो अब क्यों पास आए हो

क्या जनाब किसी अजनबी से धोखा पाकर आए हो

वजह चाहे कुछ भी हो अब कभी तुम्हारा नहीं होना है

मैं तो अपनी मस्ती में ठीक हूं मुझे अपनी जिंदगी जीना है

मैं अब खुद ही खुद से मिलना चाहती हूं

अपने वजूद और विश्वास को वापस लाना चाहती हूं

मैं तुमसे दूर जाना चाहती हूं

हां मैं तुमसे दूर जाना चाहती हूं । 


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy