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Sambardhana Dikshit

Others

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Sambardhana Dikshit

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अधूरे जवाब

अधूरे जवाब

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अधूरे जवाबों के सवालों को दोबारा पूछती नहीं हूं

पर इसका मतलब ये नहीं की उनके जवाब सोचती नहीं हूं

पड़ता है फर्क हर सलीके से मुझे पर बताती नहीं हूं

रूठी रूह को मनाती हूं हर तरीके से पर जताती नहीं हूं 

बरसती हुई आंखों को कभी समझाती नहीं हूं

माना की रात काफी नहीं पर इन आंसुओं को दिन में बहाती नहीं हूं 

छिपे हैं दर्द कई ज़ेहन में पर मुस्कुराहट छुपाती नहीं हूं 

ज़ख्म भरे हैं हर कोने में पर वो ज़ख्म दिखाती नहीं हूं

मौसम भी बेमौसम ही था

सर्दियों में सुर्खियों का एहसास जो था

सर्द हवा थी बाहर पर बर्फ लफ्ज़ों में जमी थी

खामोशी कोहरे के कहर से लिपटी और हमें खबर ही न थी

बातों से बातों की ख्वाहिश थी

कुछ लम्हों की ही तो गुजारिश थी

आखिर दो और पल जोड़ने की नुमाइश थी

बस वक्त से इतनी ही तो सिफारिश थी।


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