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Sambardhana Dikshit

Inspirational

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Sambardhana Dikshit

Inspirational

डर, सफ़र और ज़िंदगी

डर, सफ़र और ज़िंदगी

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डालियों से बिछड़ने के गम में फूल खिलना नहीं छोड़ते 

समंदर में गुम हो जाने के डर से छोटी नदियां बहना नहीं छोड़ती 


डर सफ़र से नहीं कभी कभी मंज़िल भी डरा देती है

कदम तो यूं सफ़र के उतार चढ़ाव से डर जाते हैं


सफ़र कभी मखमल की सेज नहीं

बस एक आग का दरिया है

उम्मीदों की मुश्किलों को पार करना आसान नहीं

बस हौसलों से मंजिल तक की इतनी ही दूरियां हैं 


दूरियां ये सफ़र नहीं हम तय करते हैं

राहों की भी और रिश्तों की भी 


रास्ते तो लाखों पड़ी हैं सफर करने को

पर सफ़र करने को अब मन नही 


राहें ऐसी हैं अब की जिनकी मंज़िल ही गुम है 

बातें तो थी कई पर न जाने क्यों ये लब गुमसुम है

अनजान शहर अनजाने से लोगों में शहर के चकमक में

ये अकेली रूह भीड़ के शोर में भी क्यों न जाने चुप है 


अब कहने से डरते हैं लब मेरे

अब जताने से डरता है ये दिल मेरा 


डर है कहीं फिर न पीछे छूट जाऊं

डर है कहीं फिर भीड़ में अकेली न पड़ जाऊं

डर है हंसते हुए फिर एक आंसू न बहाऊँ

डर है रिश्तों को बचाते मैं फिर न खो जाऊं।


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