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Sambardhana Dikshit

Classics Inspirational

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Sambardhana Dikshit

Classics Inspirational

हकीकत से परे

हकीकत से परे

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हर बार भुगती उस एक गलती की सज़ा 

उसके आगे सब काज सही फीके पड़े 

घायल हो चुका मन ज़िंदगी को पटरी पे लाते लाते 

नज़र दौड़ाई हमने भी पर गाड़ी जा चुकी थी


कहना तो बहुत कुछ था लेकिन 

ज़ुबान ने साज़िश बड़ी अच्छी की थी

ना बोला कुछ ना समझाया 

पर फिर भी समझने वाले बहुत कुछ समझ चुके थे 

होगा शायद अगले मोड़ पर सुकून 

चल ज़िंदगी थोड़ा और चलें


बोझ उनके कंधे का भी शायद हल्का होगा 

जिनके चेहरे की खुशी बनने की ख्वाहिश थी 

खुशदिल बातें ना जाने किधर गुम थी

वो वक्त के साथ इंसान इतना कैसे बदल गया


हालात पे हालतें बदलीं और वो जकड़ गया 

सबको संभालने वाला आज ना जाने खुद कैसे बिखर गया 

लोगों ने सोचा बुझदिल ही कोई होगा 

पर उन्हे क्या पता की वो भी कुछ खोकर ही मुस्कुराया होगा


गुम हुए हालातों से शिकायत भी करी होगी 

शायद बड़े दिनों बाद वो रोकर चुप हुआ होगा

परीक्षा सी थी उसकी परेशानी पर औरों को समझ कुछ और थी 

खुद की तकलीफ उनको तकलीफ और औरों की कर्मो की फल थी 


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बोलना तो अकसर कच्ची उम्र में ही सीख जाते हैं 

पर चुप रहने की कला सीखने में पूरी उम्र गुज़र जाती है

मन की उदासी यूं न थी ना चेहरे की रौनक यूं गई थी

वो चंचला यूं अचानक ना मौन हुई थी 


ना ही वो खिलखिलाता चेहरा यूं ही मुरझाया था

सालों की ख्वाहिश यूं ही नहीं नैया में डूबी थी

ज़िंदगी में सब जीतकर भी एक दिन हारना है

लड़ रही हर पल इस जिंदगी को आखिर कफन में दफ़न तो होना है 


बिखरा है सारा संसार उसके कमरे में 

पर मन की उथल पुथल कोई न जाने 

सबकी नज़र उस कमरे में 

पर संघर्ष उसके पीछे का कोई न जाने 

अधूरा होकर भी कितना सुंदर है

और लोग पूरे होने की उम्मीद से ही हार जाते हैं।


आंखें सपनों के बहाने ढूंढ ही लेती हैं 

हकीकत उन्हें चूर करने की कोई कसर ना छोड़ती है। 

कमाल की जंग है इस सपने की हकीकत से 

हकीकत सपने तोड़ देती तो आंखे फिर सपनों को समेत लेट लेती है 

कौन लड़ रहा कैसी लड़ाई

ना पता न ही है खबर किसी को

चेहरों पे है लगाए फिरते मुखौटे

छुपा के दर्द सारे बस एक मुस्काने सजाने को।


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