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Ravi Ghayal

Romance Classics

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Ravi Ghayal

Romance Classics

स्वाल तुम्हारे-जवाब हमारे

स्वाल तुम्हारे-जवाब हमारे

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दिलों में आग लबों पर गुलाब रखते हैं

सब अपने चेहरों पे दोहरी नक़ाब रखते हैं 


फना हो जाते हैं दोहरे मुखौटों वाले...

नकाबपोश को कोई पसंद नहीं करता।

आज के दौर में अगर,

दोहरी नकाब रखने की ख्वाहिश है....

तो इंसानियत को छोड़ना होगा।

दादाओं का साथ अपनाओगे

तभी नकाबपोश रह पाओगे।


हमें चराग़ समझ कर बुझा न पाओगे

हम अपने घर में कई आफ़ताब रखते हैं

नकाबपोश कभी चराग़ हो ही नहीं सकते...

रात्रिचर के घर कभी आफताब नहीं मिलता।

वोह तो अँधेरे के पंछी होते हैं..

अंधेरों में ही जीते, और अंधेरों में ही मरते हैं।


बहुत से लोग कि जो हर्फ़-आश्ना भी नहीं

इसी में खुश हैं कि तेरी किताब रखते हैं

हर्फ-आशना होने से इल्म नहीं आता...

किताब रखने वाले सिर्फ किताबी कीड़े होते हैं।


ये मैकद़ा है, वो मस्जिद है, वो है बुत-खाना

कहीं भी जाओ फ़रिश्ते हिसाब रखते हैं


फरिश्ते-औ-इंसान ही रख सकते हैं हिसाब...

वरना....

मैकदे़, मस्जिद, बुतखाने में

फर्क क्या है 'घायल'..

परिंदे इन सब को

एक ही कतार रखते हैं।


हमारे शहर के मंज़र न देख पायेंगे

यहाँ के लोग तो आँखों में ख्वाब रखते हैं


ये किस ने कह दिया कि

मंजर देखना हो...

तो आँखों में ख्वाब होना

इक ना-क़ाबलियत है।

हम तो समझे थे...

अल्लाह और मंजर

बंद आँखों से ही नजर आते हैं।


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