गजल प्यार की।
गजल प्यार की।
मेरे दिल को बांध दुपट्टे में वो देखो चितचोर चली
मन तिनके सा उड़ा जब रूप की आंधी जोर चली।
उसने जब से मुझे प्यार से अपनी बांहों में बांधा
मेरी सांसों के उपवन से उठी महक हर ओर चली।
उसने जब अपने होंठों से हृदय तंत्र के तार बजाए।
अंग अंग में राग बजे नयनन में नई हिलोर चली ।
रूप तुम्हारा नीलकमल सा मुग्ध भ्रमर सा मेरा मन
कैद हुआ जुल्फों में जीवन चांद छिपा हो ज्यों बदली।
बिन बारिश के कैसा सावन बिना प्रेम के क्या जीवन
जीवन सिर्फ वही सुंदर है जहां दिलों में प्रीत पली।
चांद बिना कब रही चांदनी रूप गंध विन कहां कुसुम
बिना दिया के कैसी बाती कब पतंग बिन डोर चली।