चारु चन्द्रिका
चारु चन्द्रिका
बारिश की पहली बूंदों से सौंधी महक सी !
बसन्त में खिली नव पल्लवित कलिका सी !
शरद में खिले शतदल की गुलाबी पंखुरी सी,
शबनमी नन्ही बून्द पल्लव पे जमी मौक्तिक सी !
अगहन में निथरी उथली शांत गहरी नदी सी ,
शीतल मन्द मलय बयार बहकी फागुनी सी !
शरदचन्द्र की धवल चन्द्रिका चितवन चकोरी सी ,
हेम भोर में खिली गुनगुनी सुहानी मयूख सी!
मधुवन की कांत कंज कलिका महकी सी,
पवन हिंडोले झूलती नृतन करती नटी सी !
उपवन में मंडराती रंग बिरंगी तितली सी ,
सुमन पराग पान चंचल पीताभ भ्रमर सी !
हिमाद्रि तनया पुण्य पथगा जाह्नवी सी,
पाप मोचनी रूद्राणी भक्तन के उद्धार सी !
सागर में विलीन होने को आतुर नदिया सी,
सेज पर पिया से प्रथम आलिंगन बाला सी !