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Govind Narayan Sharma

Romance

4  

Govind Narayan Sharma

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चारु चन्द्रिका

चारु चन्द्रिका

1 min
3



बारिश की पहली बूंदों से सौंधी महक सी ! 

बसन्त में खिली नव पल्लवित कलिका सी ! 

शरद में खिले शतदल की गुलाबी पंखुरी सी, 

शबनमी नन्ही बून्द पल्लव पे जमी मौक्तिक सी ! 

अगहन में निथरी उथली शांत गहरी नदी सी , 

शीतल मन्द मलय बयार बहकी फागुनी सी ! 

शरदचन्द्र की धवल चन्द्रिका चितवन चकोरी सी , 

हेम भोर में खिली गुनगुनी सुहानी मयूख सी!

मधुवन की कांत कंज कलिका महकी सी, 

पवन हिंडोले झूलती नृतन करती नटी सी !

उपवन में मंडराती रंग बिरंगी तितली सी , 

सुमन पराग पान चंचल पीताभ भ्रमर सी !

हिमाद्रि तनया पुण्य पथगा जाह्नवी सी, 

पाप मोचनी रूद्राणी भक्तन के उद्धार सी !

सागर में विलीन होने को आतुर नदिया सी,

 सेज पर पिया से प्रथम आलिंगन बाला सी !



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