ग़ज़ल
ग़ज़ल
तेरे दिल में काश मोहब्बत का कोई फूल खिल जाये
मेरे सूने मन को बहारों की एक मंजिल सी मिल जाये
इन नर्गिसी आंखों से रहमत की बरसात कर दे जाने जां
तो इस धड़कते दिल को आज जरा सा सुकून मिल जाये
तेरी गलियों को अपना आशियाना बना लिया है हमने
क्या पता कब तेरे बदन की खुशबू का झोंका मिल जाये
होंठों पे खेलती तबस्सुम की बिजलियों की ख्वाहिश है
थोड़ा सा "नूर" तेरे चेहरे का मेरे अश्कों में भी घुल जाये
किसी न किसी की तो होना है तुझे यही दस्तूर है दुनिया का
तो फिर "श्री हरि" को इस हुस्न का कोहीनूर क्यों न मिल जाये।

