खामोश रहो सब, बस अपनी बारी का इंतजार करो
खामोश रहो सब, बस अपनी बारी का इंतजार करो
कभी सूटकेश में तो कभी फ्रिज में,
पैक मिलती हूँ मैं,
पहचान नहीं पाते क्योंकि,
टुकड़ों में बंटी मिलती हूँ मैं।
मेरे विश्वास का सिला,
छुरी से गोद कर दिया जाएगा,
मेरे ज़िंदा बदन को छन में,
मुर्दा कर दिया जाएगा।
मैं चीख बन अब किसी के,
दिल तक नहीं उतरती हूँ,
एक सिलसिला हूँ जो,
प्रतिदिन कहीं न कहीं मिलती हूँ।
कभी निकिता कभी श्रद्धा,
कभी साक्षी हो जाती हूँ मै,
निर्बल, अकेली, हैवानों के बीच,
रोज उधेड़ी जाती हूँ मैं।
पर तुम्हारी बेटी तो नहीं हूं ना,
जो कुछ अफसोस होगा,
बस इंतजार करो एक दिन,
तुमको भी रूबरू होना होगा।
तब दर्द की इबारत उकेर,
लहू की स्याही से लिख देना,
खामोश रहो सब, बस,
अपनी बारी का इंतजार करो।
