इंतजार का अंत
इंतजार का अंत
हृदय में उमंग
हाथों में कम्प
कदम लड़खड़ा रहे
दौड़ती जा रही
हाथ में लिए डंड
कैसी मैं अभागन
कैसे में सो गई
कहकर गए थे वो
अभी आ रहे हैं
मछली पकड़ कर
हम बाप बेटे संग।
अभी जो आंख खुली
चली आ रही
आये नहीं अभी तक
कहां रह गए वो
थक कर बैठ गई
सांस उखड़ रही
दूर से लगा उसे
नाव मछलियों भारी
आ रहे लेकर पति
अपने बेटे संग
दौड़ी, उठ चली
कहती जा रही
ठहरो मैं आ रही
नाव में आऊंगी
आज मैं भी तुम्हारे संग
बढ़ती जा रही
लहरों को चीर कर
भान कुछ भी नहीं
एक लहर ऐसी आई
ले गई उसे बहाकर
पहुंचा दिया वहां
पति और बेटा
गये थे जहाँ
खेल था यह तूफान का
उजड़ गया संसार था
सुध बुध बिसरा बैठी
सबसे अनजान थी
आज यूं अंत हुआ
उसके इंतजार का।