गुमनाम ही सही....
गुमनाम ही सही....
मिट जाए ना वहम, छुपाकर हर हालात रहने दो
दिल में ही दिल की, दबी हर बात रहने दो….
यह दुनिया कहती है, बेगैरत तो बेशक कहें
ढकी हुई हर शख्स की, औकात रहने दो….
चुपचाप नजरें झुका कर, खड़े हैं उनके सामने
हकीकतों को बनकर अब, जज़्बात रहने दो….
अपना दिल तो अंधेरों से भी, रोशन है
उनकी कैद में उजालों की, हयात रहने दो….
इस दिल में समाया हर दर्द, खुशी बन के
उनके दामन में फूलों की बरसात रहने दो….
तमाम हक है, बनाने और मिटाने का उन्हें
बस पहलू में हमें उनके, दिन-रात रहने दो….
मोहब्बत की दौलत से, आबाद है ‘अर्पिता’
गुमनाम ही सही, मगर ये कायनात रहने दो….