दर्द
दर्द
दर्द बेचने निकला था आपने, बजार में,
खरीद लाया दोस्तों के भी प्यार में।
फट गया जिगर मेरा,
दर्द इतने ज्यादा हो गये, सभी इधर, उधर बिखर गए।
ढूंढा हर जगह रफुगर को, जो
दिल के टुकड़े सिल सके।
मिला न कोई ऐसा कारीगर, जो फटे दिल को सिल सके।
क्यों खामखा दूं खिजां को दोष सुदर्शन, जब फूल दिल
के बहारों मे भी न खिल सके।
रूसवाइयों को, फजूल कोसना क्यों, बात दिल
की थी न वो समझ सके
न हम समझ सके।
उनके होते दिल को सहारे थे बहुत,
खो गए जब से बैसे सहारे न मिल सके।
उठ जाता है छाया जब पिता का सुदर्शन,
पेड़ छायादार मिलते हैं बहुत पर ठंडी हवा के झौंके कौन दे।

