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Sarita Dikshit

Abstract Romance

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Sarita Dikshit

Abstract Romance

स्वप्नलोक

स्वप्नलोक

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अब बहुत थक चुकी हूं कान्हा

इन अंकों में सो जाने दो

सहला दो मेरे केशों को

मुझे स्वप्न लोक में जाने दो


स्वप्न जगत की गलियों में

बस मुझ संग रास रचाना तुम

ना किसी वचन में निज बंधकर

मुझे एकल तज कर जाना तुम


कितनी अहने बीती तुम बिन

जाने कितनी बीती रातें

अब लौट के जब तुम आए हो 

कहनी है सदियों की बातें


लौट के वापस जाने की जब

हठ करने का यत्न करो

पलकें ना खोलूंगी अपनी

चाहे जितना प्रयत्न करो


कर्तव्य के जिस पथ पर तुम हो

मैं उस पथ में ना आऊंगी

तुम बिन जो क्षण मेरे बीते

मैं इन सपनों में पाऊंगी।


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