दिल हैं की मानता नहीं
दिल हैं की मानता नहीं
दिल हैं..की हमारा मानता नहीं..
दुनिया की चकाचौंध में.
हमेशा घिरता चला जाता...
आज ये तो कल वो..
कल वो तो परसों और कुछ...
मन कभी समाधानी नहीं होता हैं !
फिर भी दुनिया में हमें
इसी तरह जीना पढ़ता हैं..
कभी मन मारकर.. तो..
कभी मन को समझाकर..
पर एक मन ही तो है..
जो समझता ही नहीं !
ये दुनिया उस गालिब की बनाई हैं..
जहा सब उसके मन का खेल है!
हम राहगीर तो बस उस खेल को
हमेशा निभाते चले जाते है..
आज में जीते चले जाते हैं !
जियो खुश रहकर जियो !

