कुदरत..
कुदरत..
ना कोई साथ था ना कोई रहेगा!
अकेले आये है अकेले जाएंगे..
ये तो कुदरत का इनाम है हम इंसानों को..
कोई कुछ साथ लेकर नहीं जाता..
जन्म से हम खाली हाथ आते है..
मरने के बाद भी खाली जाते है!
फिर भी इन्सान ज़िंदगी की धड़–पढ़ में
अपने आप को जीवन चक्र में पिसता चला जाता है..
अपने ज़िन्दगी में अपने आप रिश्तों में बहता चला जाता है..