मन पंख पखेरू
मन पंख पखेरू
ये मन पंख पखेरु...
उड़ता ही चला जाता है..
हर मार्ग पर भटक जाता है..
कभी इधर कभी उधर..
कभी यहां कभी वहा..
कभी कहा –कहा..
खुद को भी पता नहीं..
पर मन तितली की तरह उड़ता..
अपनी खुशबू को फूलो पर बिखराता..
हवा में मस्त लहराता..
एक जगह से दूसरी जगह..
अपनी धुन में अपने मगन में रंग बिखेरता
अपनी अपनी मंज़िल पर पहुंच जाता है!
एक नई स्वपन की दुनिया बसाने!
