समय -चक्र
समय -चक्र
कहता है पपीहा राह राह में...
ढूंढ ना अपनी मंजिल !!
झांक के देख आत्म दर्पण में !
तू है सिर्फ मुसाफिर !!
मंजिल ना तेरी कोई यहां पे !
तू है भटका का राहगीर !!
भूली भटकी सी गलियों में !
ठहराव न तेरी मंजिल !!
राही तू अलबेला डगर में !
खुद को कब पहचानेगा !!
लिपटे अपने पद चिन्हों से !
भ्रम से तू कब जागेगा !!
बचपन से यौवन के रास्ते !
बुढापा में मिट जाएगा !!
एक नई पंख एक नई दिशा मे !
खुद का अस्तित्व पाएगा !!
आया है माटी से बनके !
माटी में मिल जाएगा !!
एक नई बीज मे फिर पनप के !
राह में खुद को पाएगा !!
कहता है पपीहा राह राह में...
ढूंढ ना अपनी मंजिल !!
तू तो सिर्फ मुसाफिर रे !
समय चक्र ही तेरी मंजिल !!
