बेटियाँ
बेटियाँ
बेटियाँ हैं तो सुखद हर पल है,
घूमती घर आँगन वो चंचल है,
आँगन की तुलसी बनी हैं वो,
हैं बेटियाँ तो सुनहरा कल है।
दो कुलों की रीत निभाती वो,
घर की जिम्मेदारी उठाती वो,
है बेटियाँ तो उज्ज्वल कल हैं,
दर्द माँ बाप की मिटाती वो।
भावनाओं से लबरेज कहानी है,
सुखद सी उनसे जिंदगानी है,
बेटी बहु पत्नी के रूप में सदा,
उनकी अद्भुत लगती रवानी है।
चाँद सा शीतलता है उनमें
तो सूर्य सा रखती आग भी,
मत करो अस्मिता पर हमला,
उनसे है सुंदर राग भी।
घर बाहर की जिम्मेदारी निभाती,
मर्यादा और संस्कार का पाठ पढ़ाती,
छू लें आसमान की ऊँचाई भी,
जमाने का सामना करना सीखाती।
हैं बेटियाँ तो सुन्दर कल है,
नही उनके अंदर कभी छल है,
बहती हैं वो नदियों सी अविरल,
गीत उनका सुमधुर कल कल है।