राजभाषा हो तुम
राजभाषा हो तुम
मातृमुख से मिली माँ सरीखी हो तुम
मेरी भाषा नहीं राजभाषा हो तुम।
पिता की बोलियाँ, बांहों की डोलियाँ
दादी नानी की अनुपम कहानी हो तुम।
खेतों में पली, गलियों से चली,
झोंपड़ी में सजी राजरानी हो तुम।।
मेरी भाषा नहीं राजभाषा हो तुम।।
विद्या मंदिर बनी पाठशाला मेरी..
प्रार्थना के स्वरों में जो मुखरित हुई,
शिक्षकों से सुनी एक वाणी हो तुम।
मेरी भाषा नहीं राजभाषा हो तुम।।
फिर चली जिंदगी, मैं भी चलने लगी..
छूटे माता-पिता साथ तुम ही चली।
तुमने पाला मुझे, तुमने पोसा मुझे
जब
सतायी क्षुधा तुम निवाला बनी।
मेरी भाषा नहीं राजभाषा हो तुम।।
इस जगत ने रुलाया है जब -जब मुझे
साथ तुमने दिया ,तुम सहारा बनी।
बन कविता कभी, बन कहानी कभी,
मेरी साथी, सखी, जिंदगानी बनी।।
मेरी भाषा नहीं राजभाषा हो तुम।।
मेरी आराधना, और मेरी साधना,
मेरी अभिनव सी, सुंदर सी नैया हो तुम।
पार करके ही छोड़ोगी संसार से।
मेरी सचमुच ही प्यारी खिवैया हो तुम।
मेरी भाषा नहीं राजभाषा हो तुम।।
मातृमुख से मिली माँ सरीखी हो तुम।
मेरी भाषा नहीं राजभाषा हो तुम।।